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सदा ऋणी रहेगा कृषक समाज

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Dr. R S Paroda

पिछले दिनों प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भारत में हरित क्रांति के जनक डॉ.एम.एस. स्वामीनाथन को भारत रत्न से सम्मानित करने की घोषणा की। कृषि वैज्ञानिक समुदाय ने इसका सहर्ष स्वागत किया। डॉ. स्वामीनाथन को किसानों का वैज्ञानिक कहकर संबोधित करना भी सर्वथा उचित है, क्योंकि वे आजीवन कृषक समुदाय के कल्याण के लिए काम करते रहे। वे संभवतः एकमात्र गणमान्य व्यक्ति हैं जिन्हें सभी प्रतिष्ठित नागरिक पुरस्कारों से नवाजा गया- पद्मश्री, पद्म भूषण और पद्मविभूषण। उनके बेहतरीन नेतृत्व और अमूल्य योगदान का ही नतीजा है कि आज भारत पूरी दुनिया में गर्व से सिर उठाकर खड़ा है। यह सबसे अधिक आबादी वाला देश होने के बावजूद खाद्यान्न की घरेलू जरूरत को पूरा करने में सक्षम है।

आज हम दुनिया में एक प्रमुख खाद्य निर्यातक देश बन गए हैं। राष्ट्रीय कृषि अनुसंधान प्रणाली को मजबूत बनाना, पुनर्गठित भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के पहले महानिदेशक की भूमिका निभाना, कृषि अनुसंधान एवं शिक्षा विभाग के सचिव के रूप में कार्य करना, कृषि अनुसंधान सेवा की शुरुआत करना तथा ऐसे अनेक सुधार कार्य हैं जिन्हें डॉ.स्वामीनाथन के योगदान के रूप में याद किया जाएगा। वे दुनिया के सबसे प्रतिष्ठित कृषि वैज्ञानिकों में शुमार किए जाते हैं।

डॉ. स्वामीनाथन को 1987 में पहला वर्ल्ड फूड प्राइज मिला। सामुदायिक नेतृत्व के लिए उन्हें 1971 में मैगसेसे अवार्ड से भी सम्मानित किया गया। उन्हें 1987 में अल्बर्ट आइंस्टीन वर्ल्ड साइंस अवार्ड, 1994 में इंदिरा गांधी शांति पुरस्कार, 1994 में ही यूएनईपी सासाकावा एनवायरमेंट पुरस्कार, 1999 में यूनेस्को गांधी गोल्ड मेडल तथा अन्य अनेक पुरस्कारों से सम्मानित किया गया। वे इंडियन साइंस कांग्रेस के प्रेसिडेंट के साथ खाद्य एवं कृषि संगठन (एफएओ) काउंसिल के चेयरमैन भी थे। वे अंतर्राष्ट्रीय चावल अनुसंधान संस्थान (आईआरआरआई) के महानिदेशक पद पर भी रहे और चेन्नई स्थित एमएस स्वामीनाथन रिसर्च फाउंडेशन के संस्थापक अध्यक्ष भी थे। अपने जीवन काल में उन्होंने जो सम्मान हासिल किया वह उनके अमूल्य योगदान की गवाही देता है। ये सम्मान कृषि और ग्रामीण विकास के लिए उनकी प्रतिबद्धता को भी दर्शाते हैं।



उनके जाने से जो स्थान रिक्त हुआ उसे भर पाना बहुत मुश्किल है। वे दूरद्रष्टा होने के साथ महान व्यक्तित्व के भी मालिक थे। और सबसे बड़ी बात किसान आयोग के अध्यक्ष के तौर पर उनकी सिफारिशों के कारण उनका पूरे देश में सम्मान किया जाता है। उन्होंने न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) के लिए किसान की लागत और 50% राशि (सी2 प्लस 50%) की सिफारिश की थी। किसानों और भारतीय कृषि के प्रति उनके प्रेम के कारण पूरा कृषक समुदाय उनका कृतज्ञ है।

समस्त कृषि वैज्ञानिक समुदाय इस बात से प्रसन्न है कि खाद्य एवं पोषण सुरक्षा में डॉ. स्वामीनाथन के योगदान को स्वीकार करते हुए उन्हें देश का सर्वोच्च सम्मान, भारत रत्न दिया गया। उनके जीवित रहते अगर यह सम्मान दिया जाता तो बेहतर होता।

डॉ. स्वामीनाथन एक महानायक, महान द्रष्टा, नीति निर्माता और बेहतरीन व्यक्ति थे। वे भारत के महान सपूत थे। अखिल भारतीय कृषि अनुसंधान सेवा (एआरएस) गठित करने में भी उनकी महत्वपूर्ण भूमिका थी। इसकी वजह से देश के हर कोने में कृषि वैज्ञानिकों को अनुसंधान में मदद मिली। देश को खाद्यान्न के मामले में आत्मनिर्भर बनाने में उनका योगदान अमूल्य है। उन्होंने बौने गेहूं की वैरायटी विकसित की जिसके कारण देश में खाद्यान्न उत्पादन जो 1950 में 5 करोड़ टन था, अब 33 करोड़ टन पहुंच गया है। इसलिए भारत आयातक देश से निर्यातक देश बन सका।

वैज्ञानिक खोजों और उन्हें धरातल पर लागू करने के बीच अंतर को पाटने की उनकी प्रतिबद्धता का नतीजा लैब टू लैंड प्रोग्राम है। इस पहल के तहत कृषि टेक्नोलॉजी सीधे किसानों को हस्तांतरित की जाती है, ताकि अनुसंधान का लाभ हमारे खेतों में मेहनत करने वालों को तक पहुंचे। अपने पूरे विशिष्ट करियर में उन्होंने राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कृषि क्षेत्र को अनेक योगदान दिया।

प्रो. स्वामीनाथन का प्रभाव और नेतृत्व भारत की सीमा के बाहर भी था। वर्ष 1982 से 1988 तक फिलीपींस में अंतरराष्ट्रीय चावल अनुसंधान संस्थान के महानिदेशक के तौर पर उन्होंने इस संस्थान को आगे बढ़ने की दिशा दी, जिसका पूरी दुनिया के चावल उत्पादक क्षेत्र को लाभ हुआ। वे पगवॉश कॉन्फ्रेंस और इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर के प्रेसिडेंट भी रहे। वर्ष 1999 में वे महात्मा गांधी और रवींद्रनाथ टैगोर के साथ तीसरे भारतीय थे जिन्हें टाइम मैगजीन ने 20वीं सदी में एशिया के बीच सर्वाधिक प्रभावशाली लोगों में रखा था।

कृषक समुदाय के कल्याण के लिए उन्होंने आजीवन अथक प्रयास किया। किसान आयोग के अध्यक्ष के रूप में उन्होंने सरकार को राष्ट्रीय किसान कल्याण नीति लाने पर राजी किया और किसानों को बतौर एमएसपी लागत और 50% राशि (सी2 प्लस 50%) देने की सिफारिश की। इसके लिए कृषक समुदाय में उनका काफी सम्मान किया जाता है। उम्मीद है कि एक राष्ट्रीय किसान कल्याण नीति के उनके सपने को संसद में यथाशीघ्र मंजूरी मिल जाएगी।

प्रासंगिकता के साथ उत्कृष्टता, जोश के साथ कठिन परिश्रम, समाज के लिए विज्ञान, विनम्रता के साथ गुणवत्ता, यह सब उनके पूरे जीवन काल की अमूल्य सीख हैं। मेरा मानना है कि उनकी उपलब्धियां युवा पीढ़ी को भारतीय कृषि को एक बेहतर भविष्य की ओर ले जाने के लिए प्रेरित करती रहेंगी।


Dr. R S Paroda
Former Secretary, DARE & Director General, ICAR and Chairman, Trust for Advancement of Agricultural Sciences (TAAS) (Padma Bhushan Awardee)

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