टेक्नोलॉजी और मार्केटिंग से गुड़-खांडसारी इंडस्ट्री का नया दौर
उत्तर प्रदेश में चीनी मिलों की तेजी से बढ़ी संख्या के चलते गुड़ और खांडसारी उद्योग विलुप्त होने के कगार पर आ गया था। नई सोच वाले उद्यमियों के आने और तकनीक के उपयोग से इसके दोबारा खड़ा होने की संभावना बन गई है
Harvir Singh
ऑटोमेशन, कंप्यूटर कंट्रोल, पैनल, नो ह्यूमन टच, नो पॉल्यूशन, धुंआ रहित जैसे शब्द जब गुड़ बनाने वाली इकाई के साथ जुड़ते हैं तो लोगों को सहसा यकीन नहीं होता, क्योंकि उनके जेहन में कोल्हू, क्रशर और खुले में कढ़ाह में खौलते रस से परंपरागत तरीके से गुड़ बनाने का तरीका ही होता है। लेकिन यह हकीकत है। टेक्नोलॉजी और नई मार्केटिंग की रणनीति गुड़ उद्योग के आधुनिक स्वरूप का नया रास्ता खोल रही है। जिस गुड़ उद्योग को प्रदूषण और अनहाइजनिक उत्पादन प्रक्रिया के रूप में देखा जाता है, टेक्नोलॉजी उस धारणा को बदल रही है। यही नहीं, केमिकल मुक्त और पोषकता बरकरार रखने वाले करीब चार दशक पहले बनने वाले गुणवत्ता युक्त गुड़ उत्पादों की वापसी भी हो रही है। हाइजनिक और आकर्षक पैकिंग तथा उत्पादों की बड़ी रेंज आने वाले दिनों में उपभोक्ताओं के बीच इसकी खपत बढ़ाने के साथ नये आंत्रप्रेन्योर भी पैदा कर सकती है।
चीनी उद्योग में स्थापित नाम के पी सिंह के परिवार ने शामली जिले के सिकंदरपुर गांव में हंस हैरीटेज जैगरीज एंड फार्म प्रोड्यूस के रूप में ऑटोमेटिक और नवीनतम टेक्नोलॉजी आधारित गुड़ उत्पादन संयंत्र स्थापित किया है। शुगर इंडस्ट्री में करीब 40 साल का अनुभव रखने वाले के पी सिंह देश के सबसे बड़े चीनी उद्योग समूह में शुमार बलरामपुर चीनी मिल में ग्रुप टेक्नोलॉजी हैड रहे हैं। शामली जिले के गांव ऊन के निवासी हंस हैरिटेज के सीईओ के पी सिंह रूरल वर्ल्ड के साथ हंस हैरिटेज संयंत्र के परिसर में नई तकनीक से गुड़ उत्पादन और इस उद्योग को स्थापित करने के बारे में अपने विचार साझा करते हुए कहते हैं, “मैंने चीनी उद्योग में बहुत कुछ हासिल किया। अब मेरा विचार अपने गांव में एक आधुनिक उद्योग स्थापित करने था ताकि मैं समाज को भी कुछ लौटा सकूं। इसके लिए मैने ऊन में 10 एकड़ जमीन खरीदी ताकि वहां यह संयंत्र स्थापित किया जा सके। लेकिन ऊन में राणा शुगर नाम से चीनी मिल है और सरकारी नियमों के मुताबिक चीनी मिल के 7.5 किलोमीटर के दायरे में पावर क्रशर आधारित खांडसारी इकाई स्थापित नहीं की जा सकती। इसलिए सिकंदरपुर में तीन एकड़ जमीन खरीद कर यह संयंत्र स्थापित किया। इसमें करीब 14 करोड़ रुपये का खर्च आया जिसमें कुछ मेरा पैसा था और कुछ रिश्तेदारों से लिया। बैंक से कर्ज नहीं है।”
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Harvir Singh
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