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हरियाणा में बदला वेटरनरी का चेहरा, बढ़ी महिलाओं की हिस्सेदारी

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Ajeet Singh

हरियाणा की महिलाएं खेल के मैदान में तो झंडे गाड़ ही रही हैं, अब पुरुषों के वर्चस्व वाले दूसरे प्रोफेशन में भी अपनी पहचान बना रही हैं। इसकी एक बानगी राज्य के पशुपालन विभाग और पशु चिकित्सा संस्थानों में दिख रही है। साल 2000 से 2024 के बीच पशुपालन विभाग में सिर्फ 96 महिला वेटरनरी सर्जन थीं, लेकिन 2024 में हुई वेटरनरी सर्जन की भर्ती के बाद यह तस्वीर बदल गई है। इस साल नियुक्त हुए 307 वेटरनरी सर्जन में से 99 यानी लगभग एक-तिहाई महिलाएं हैं। इनमें कई तो वेटरनरी साइंस में मास्टर्स और पीएचडी हैं। वेटरनरीसाइंस (पशु चिकित्सा और शोध) जैसे पुरुष प्रधान और चुनौतीपूर्ण क्षेत्र में महिलाओं के आगे बढ़ने की राह आसान नहीं थी। लेकिन महिलाएं न केवल इस पेशे में अपनी जगह बना रही हैं, बल्कि कई पुरानी धारणाओं का भी बखूबी इलाज कर रही हैं।

  वेटरनरी डॉक्टर और वर्तमान में राज्य के पशुपालन एवं डेयरी विभाग में संयुक्त निदेशक डॉ. पुनीता गहलावत खुद इस बदलाव की मिसाल हैं। बतौर वेटरनरी सर्जन नौकरी में अपने शुरुआती दिनों को याद करती हुई रूरल वर्ल्ड से बातचीत में वे बताती हैं, "साल 1997 में उनकी पहली पोस्टिंग गुरुग्राम के खेड़की दौला गांव में हुई। वहां पहुंची तो देखा कि पशु अस्पताल जर्जर हालत में था और असामाजिक तत्वों का अड्डा बन चुका था। लगा कि मैं कहां आ गई हूं। लेकिन आर्मी बैकग्राउंड वाले पति और परिजनों के सहयोग से वहीं टिकने का फैसला किया, कई साल वहां जमकर काम किया।"

  महिला वेटरनरी सर्जन के तौर पर गांव- देहात में काम करने की चुनौतियों को डॉ. पुनीता गहलावत एक किस्से से समझाती हैं। उन्होंने बताया, "एक बार गांव में किसी किसान की भैंस बीमार हो गई। वह पशु अस्पताल पहुंचा तो वहां उसे मैं मिली। किसान ने पूछा,डॉक्टर साहब कहां हैं? मैंने बताया कि मैं ही डॉक्टर हूं, आप परेशानी बताइये। किसान को कुछ समझ नहीं आया। उसने फिर पूछा, अरे डांगरों का डॉक्टर कहां है? मेरी भैंस बीमार है। तब मैंने बताया कि मैं ही पशुओं की डॉक्टर हूं और इस अस्पताल में मेरी ही ड्यूटी है। मैं इलाज करूंगी।" डॉ. गहलावत के अनुसार, जब आसपास के लोगों ने समझाया, तब उस किसान को यकीन हुआ कि महिलाएं भी वेटरनरी डॉक्टर हो सकती हैं।

  सन 1952 में जब भारत की पहली महिला पशु चिकित्सक डॉ. सक्कुबाई रामचंद्रन मद्रास वेटरनरी कॉलेज से ग्रेजुएट होकर निकली थीं, तब से इस क्षेत्र में महिलाओं ने लंबा सफर तय किया है। अब पशु चिकित्सा के क्षेत्र में न सिर्फ महिलाएं बड़ी संख्या में आगे आ रही हैं बल्कि ग्रामीण समुदायों के बीच काम करने और मवेशियों के इलाज की चुनौती को आगे बढ़ कर स्वीकार कर रही हैं। इस तरह पुरुषों के वर्चस्व वाले इस क्षेत्र में आगे बढ़ती महिलाएं सामाजिक बदलाव की नई इबारत लिख रही हैं।

   हिसार स्थित लाला लाजपत राय पशु चिकित्सा एवं पशु विज्ञान विज्ञान विश्वविद्यालय में वैज्ञानिक डॉ. स्वाति दहिया बताती हैं कि 1992 में जब उन्होंने वेटरनरी साइंस के बैचलर प्रोग्राम में प्रवेश किया तो पूरे बैच में मात्र तीन लड़कियां थीं। लेकिन अब वेटरनरी साइंस के कोर्सेज में 40 फीसदी तक लड़कियां होती हैं। पिछले कुछ दशकों में यह बड़ा बदलाव आया है। हालांकि, महिलाओं के लिए यह राह आसान नहीं है क्योंकि महिला होने के नाते पशु चिकित्सा के क्षेत्र में सामाजिक और पेशेगत दोहरी चुनौतियों का सामना करना पड़ता है।

  डॉ. पुनीता कहती हैं कि जब अभिभावक "लोग क्या कहेंगे" या "बेटी को पशुओं का डॉक्टर बनाओगे" जैसे सवालों की परवाह किए बिना बेटियों को वेटरनरी के क्षेत्र में जाने देते हैं, तो वहीं से बदलाव की शुरुआत होती है। फिर महिलाएं जब लगातार फील्ड में रहकर काम करती हैं और लोग देखते हैं कि महिला डॉक्टर भी पुरुष डॉक्टरों की तरह पशुओं के 66 वेटरनरी डॉक्टर के रूप में महिलाओं को सामाजिक और पेशेगत दोहरी चुनौती का सामना करना पड़ता है। लेकिन महिलाएं इन दोनों चुनौतियों को बखूबी पार कर आगे बढ़ रही हैं नौकरी और करियर के बेहतर विकल्प होना भी है। इस साल हरियाणा के पशुपालन विभाग में वेटरनरी सर्जन के तौर पर नियुक्त हुईं डॉ. वाजिहा नाज बताती हैं कि उन्होंने तैयारी तो एमबीबीएस के लिए की थी, लेकिन उसमें विभाग में वेटरनरी सर्जन के पद पर ज्वाइन करना बेहतर समझा क्योंकि पशु चिकित्सक के रूप में अच्छी सरकारी नौकरी का अपना आकर्षण है। मूलतः बिजनौर की रहने वाली डॉ. वाजिहा ने इस नौकरी के लिए हरियाणा में आने इलाज से जुड़े सारे काम कर सकती हैं तो उनका भरोसा बढ़ता है। डॉ. पुनीता बताती हैं कि अब विभाग में संयुक्त निदेशक पर पद होने के बावजूद खेड़की दौला के लोग उन्हें फोन कर पशुओं के इलाज के बारे में पूछते रहते हैं। लगातार फील्ड में काम करने से इस प्रकार का भरोसा बनता है।

बेहतर कॅरियर का विकल्प

वेटरनरी फील्ड में अब अधिक महिलाओं के आने की एक बड़ी वजह सुनिश्चित नौकरी और करियर के बेहतर विकल्प होना भी है। इस साल हरियाणा के पशुपालन विभाग में वेटरनरी सर्जन के तौर पर नियुक्त हुईं डॉ. वाजिहा नाज बताती हैं कि उन्होंने तैयारी तो एमबीबीएस के लिए की थी. लेकिन उसमें सरकारी अवसर नहीं मिला तो बीडीएस या बीएएमएस करने की बजाय वेटरनरी में जाने का फैसला किया। इसमें पेरेंट्स का तो पूरा सपोर्ट मिला, लेकिन कई रिश्तेदारों की प्रतिक्रिया ऐसी थी कि "बेटी को कहां भेज रहे हो" या "ये पशुओं का इलाज कैसे करेगी?" वाजिहा बताती हैं कि वेटरनरी कॉलेज में पांच साल की ट्रेनिंग ने उन्हें इस क्षेत्र की चुनौतियों के लिए काफी हद तक तैयार कर दिया है। मास्टर्स करने के बाद उनके पास साइंटिफिक या एकेडमिक फील्ड में जाने का अवसर भी था, लेकिन उन्होंने सरकारी में कोई संकोच नहीं किया। 

  इसी साल हरियाणा के पशुपालन विभाग में वेटरनरी सर्जन के तौर नियुक्त डॉ. जिज्ञासा बताती हैं कि एक रिसर्च इंस्टीट्यूट में काम करने के बाद उन्हें लगा कि उनका मन फील्ड के काम में है इसलिए वेटरनरी सर्जन की भर्ती के लिए आवेदन किया। उन्हें बचपन से ही बेजुबान जानवरों की सेवा करना अच्छा लगता था। यह प्रेरणा उन्हें उनके दादा से भी मिली जो खुद वेटरनरी डॉक्टर थे। जानवरों का इलाज करना आसान नहीं है, इस चुनौती का उन्हें पहले से अंदाजा था। फिर भी इस क्षेत्र में आगे बढ़ने का फैसला किया, क्योंकि सेवा के साथ-साथ यह एक अच्छा करियर ऑप्शन है।

  वेटरनरी फील्ड में शिक्षण संस्थानों की संख्या सीमित है, इसलिए वेटरनरी साइंस की डिग्री हासिल करने वाले अधिकांश डॉक्टरों को सरकारी नौकरी मिल जाती है। यह भी इस फील्ड में आने का बड़ा आकर्षण रहा है। हालांकि, वेटरनरी में भी प्राइवेट कॉलेज खुलने से यह स्थिति बदल रही है लेकिन अब डेयरी, पोल्ट्री और रिसर्च सेक्टर में नए अवसर भी खुल रहे हैं।

सामाजिक परिवर्तन का संकेत

हरियाणा सरकार के कृषि, पशुपालन और डेयरी विभाग के अतिरिक्त मुख्य सचिव डॉ. राजाशेखर कुंदरु का मानना है कि राज्य में वेटरनरी सर्जन की नई नियुक्तियों में लगभग एक-तिहाई महिलाओं का होना बड़े सामाजिक परिवर्तन का संकेत है। खासतौर पर ऐसे क्षेत्र में जहां पुरुष वेटरनरी डॉक्टर भी मुख्यतः कृषि और पशुपालन से जुड़े ग्रामीण समुदायों से ही आते हैं। वेटरनरी फील्ड में अधिक से अधिक महिलाओं के आने से पशु चिकित्सों को लेकर लोगों की धारणा भी बदलेगी।

  डॉ. वुंदरु बताते हैं कि हरियाणा में वेटरनरी सर्जन ही नहीं, बल्कि पशु चिकित्सा एवं पशुधन विकास सहायक (वीएलडीए) के तौर पर भी महिलाएं बखूबी काम कर रही हैं। इस क्षेत्र में महिलाओं को आगे बढ़ने के अवसर देना हरियाणा के पशुपालन और डेयरी विभाग की बड़ी उपलब्धि है।

  पशु चिकित्सा के क्षेत्र में महिलाओं की भागीदारी बढ़ने का असर कई तरह से देखा जा रहा है। पशुपालन विभाग के महानिदेशक डॉ. एल.सी. रंगा बताते हैं कि वेटरनरी सर्जन के तौर पर महिलाओं की संख्या बढ़ने से पशुपालन संबंधी जागरूकता कैंप में ग्रामीण महिलाओं की भागीदारी पर सकारात्मक असर पड़ेगा। इससे विभाग की योजनाओं को घर-घर पहुंचाने में भी मदद मिलेगी। डॉ. रंगा का कहना है कि महिला वेटरनरी सर्जनों के मामले में भी हरियाणा देश में अग्रणी भूमिका निभा रहा है। इस क्षेत्र में महिलाएं आगे बढ़ सकें, इसके लिए कामकाज का बेहतर माहौल और सुविधाएं देने के प्रयास किए जा रहे हैं। नव नियुक्त हाई क्वालिफाइड महिला पशु चिकित्सों की सेवाओं का लाभ प्रदेश में नए खुलने वाले वेटरनरी पॉलीक्लिनिक को भी मिलेगा।

  हरियाणा के मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी ने पिछले दिनों घोषणा की है कि राज्य के आठ जिलों पंचकूला, कैथल, करनाल, हिसार, झज्जर, गुरुग्राम, फरीदाबाद और यमुनानगर में भी पशुओं के लिए पॉलीक्लिनिक खोले जाएंगे। इससे उनके इलाज के लिए पैथोलॉजी, गायनेकोलॉजिस्ट, माइक्रोबायोलॉजी, सर्जरी, एक्सरे और अल्ट्रासाउंड की सुविधाएं मिलेंगी। राज्य सरकार की योजना हरियाणा के हर जिले में वेटरनरी पॉलीक्लिनिक खोलने की है।

नया दंगल, नई चुनौतियां

वेटरनरी के क्षेत्र में महिलाओं की संख्या बढ़ने के बावजूद उनके लिए आगे बढ़ने की राह आसान नहीं है। बल्लभगढ़ में वेटरनरी सर्जन के तौर पर कार्यरत डॉ. तरुणा खेमानी ने बताया कि पोस्ट ग्रेजुएशन के बाद उन्होंने कई साल प्राइवेट सेक्टर और पोल्ट्री इंडस्ट्री में काम किया और छोटे व बड़े पशुओं की सर्जरी में दक्षता हासिल की। इस अनुभव का लाभ उन्हें पशुपालन विभाग में काम करते हुए मिल रहा है। लेकिन चुनौतियां भी कम नहीं हैं। ज्यादातर पशु चिकित्सालय ग्रामीण इलाकों में होते हैं। गांवों में काम करने और महिला के तौर पर पारिवारिक जिम्मेदारी भी निभाने की अपनी चुनौतियां हैं। फिर इंफ्रास्ट्रक्चर और बुनियादी सुविधाओं का भी अभाव रहता है।

  डॉ. तरुणा बताती हैं कि कई जगह तो साफ टॉयलेट की व्यवस्था भी नहीं होती है और गांव में किसी के घर जाकर टॉयलेट इस्तेमाल करना पड़ता है। पशुओं के टीकाकरण और टैगिंग के लिए घर-घर जाना पड़ता है। बहुत से पशुपालक जानवरों को टीका लगवाने को तैयार नहीं होते। उन्हें लगता है कि इससे दूध घट जाएगा या गर्भपात का डर रहेगा। " महिला डॉक्टर पशुओं का कृत्रिम गर्भाधान कैसे करेगी?" इस तरह के सवाल कदम-कदम पर उठते हैं। ऐसे में हमें बार-बार खुद को साबित करना पड़ता है।

  डॉ. तरुणा मानती हैं कि पशुपालकों, खासकर महिलाओं के साथ निरंतर संपर्क और पशुओं के इलाज से लेकर बीमा क्लेम दिलवाने जैसे कामों में उनकी मदद करने से भरोसा बढ़ता है। लेकिन इसमें समय के साथ मेहनत भी लगती है। फिर मर्दवादी और जातिवादी सोच के पूर्वाग्रह भी राह में आते ही रहते हैं। वह याद करती हैं कि कैसे एक बार गांव के कुछ लोगों में उनकी जाति और पृष्ठभूमि को लेकर शर्त लग गई कि इतना कठिन काम तो गांव की जाति विशेष की लड़कियां ही कर सकती हैं। इस तरह की बातों का भी सामना करना पड़ता है।

  सिरसा जिले में वेटरनरी सर्जन डॉ. नलिनी प्रजापति मानती हैं कि महिला होने के नाते वेटरनरी और एनिमल हसबेंडरी से जुड़े काम करने में कुछ चुनौतियां बढ़ जाती हैं, हालांकि कुछ मामलों में आसानी भी होती है। जैसे परिवार की महिला मुखिया से बात कर उन्हें समझाना आसान होता है। पशुपालक महिलाएं कोई बात समझ जाती हैं तो घर के पुरुषों को भी समझा देती हैं। इससे टीकाकरण, टैगिंग और कृत्रिम गर्भधान से जुड़े अभियान चलाने में मदद मिलती है। जिन महिलाओं के परिवार में कोई पहले से कोई पशु चिकित्सा के क्षेत्र में होता है या फिर जो लड़कियां ग्रामीण पृष्ठभूमि अच्छी सरकारी नौकरी और करियर की बढ़ती संभावनाओं के चलते वेटरनरी फील्ड में अब पहले से अधिक महिलाएं आ रही हैं। इस क्षेत्र में भी पुरुषों का वर्चस्व टूट रहा है से आती हैं, उन्हें इन चुनौतियाँ का अंदाजा रहता है। लेकिन जब तक आपके अंदर इस क्षेत्र में काम करने का उत्साह नहीं होगा, तब तक यह क्षेत्र मुश्किलों भरा ही लगेगा।

  डॉ. नलिनी बताती हैं कि उनके पति भी पंजाब के मानसा में वेटरनरी डॉक्टर हैं। वह चाहती तो मेडिकल या साइंस से जुड़े अन्य क्षेत्रों में जा सकती थीं, लेकिन वेटरनरी को करियर के तौर पर चुना। हालांकि, ग्रामीण क्षेत्रों में काम करते हुए ऐसी परिस्थितियां भी आती हैं जब किसान पशुओं का इलाज कराने के लिए किसी महिला डॉक्टर की बजाय पुरुष वेटरनरी डॉक्टर को ढूंढते हैं। वे सवाल करते हैं, "आप कैसे करोगे, आपसे हो पाएगा?" वहां बताना पड़ता है कि मैं इस काम को करने में सक्षम हूं।

  रुआती वर्षों में ज्यादा आते हैं। पहले जब पूरे जिले में दो-चार महिला वेटरनरी सर्जन होती थीं, तब स्थितियां ज्यादा मुश्किल थीं। समय के साथ स्थितियां बदली हैं। अब पहले से अधिक महिला वेटरनरी डॉक्टर दिखाई देती हैं जो बेजुबान जानवरों की पीड़ा को बेहतर ढंग से समझती हैं।"

  करीब 17 वर्षों से हरियाणा में वेटरनरी सर्जन के तौर पर कार्यरत डॉ. सीमा दत्त बताती हैं कि हाल के वर्षों में पशु चिकित्सा से जुड़े क्षेत्रों में करियर के अच्छे अवसर बन रहे हैं। वेटरनरी की पढ़ाई करने के बाद पालतू जानवरों के क्लीनिक, वाइल्ड लाइफ, पोल्ट्री और रिसर्च के फील्ड में काफी संभावनाएं हैं। साथ ही वेटरनरी डॉक्टर के तौर पर सरकारी नौकरी का आकर्षण बना हुआ है। इसलिए अब पहले से ज्यादा लड़कियां तमाम चुनौतियों के बावजूद वेटरनरी फील्ड में करियर बना रही हैं।

  फतेहाबाद जिले में वेटरनरी सर्जन डॉ. नीलम इस क्षेत्र में अपना अनुभव साझा करते हुए कहती हैं कि किसान परिवार से होने के नाते उनके लिए यह क्षेत्र बहुत नया नहीं था। बचपन से ही वे अपने आसपास पशुओं देखती आई हैं।

  गौशाला का निरीक्षण करती पशुपालन विभाग की संयुक्त निदेशक डॉ. पुनीता गहलावत लेकिन सरकारी नौकरी में आने के बाद देखा कि पुरुष और महिला डॉक्टरों के प्रत्ति न सिर्फ ग्रामीणों का बल्कि सहायक स्टाफ और सहकर्मियों के नजरिए में भी फर्क होता है। हालांकि, जिन अस्पतालों में पहले महिला वेटरनरी सर्जन काम कर चुकी हैं, वहां आने वाली महिला डॉक्टरों के लिए काम करना थोड़ा आसान हो जाता है।

  गुरुग्राम में वेटरनरी सर्जन डॉ. कविता चौधरी ने बताया कि पशुओं को हँडल करने के लिए सहायक स्टाफ होता है, लेकिन कई बार कोई पशु बहुत आक्रामक हो जाता है। ऐसे में चैलेंज बढ़ जाता है। लेकिन महिलाएं इन चुनौतियों को बखूबी पार कर रही हैं और आने वाली पीढ़ियों के लिए राह आसान बना रही हैं।

  महिलाएं वेटरनरी फील्ड में आ तो रही है लेकिन उन्हें आगे बढ़ने और उच्च पदों पर पहुंचने के लिए बाकी क्षेत्रों की तरह ही संघर्ष करना पड़ता है। यह महिलाओं का सतत संघर्ष है। फिर भी हरियाणा में पशु चिकित्सा के क्षेत्र में महिलाओं ने जिस तरह अपनी जगह बनाई है, वह एक मिसाल है। यह कामयाबी भी किसी दंगल जीतने से कम नहीं है।


Ajeet Singh

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