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कृषि आय बढ़ाने और महिलाओं के आर्थिक सशक्तीकरण में डेयरी सेक्टर अहम

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डॉ. आर. एस. सोढ़ी

आठ करोड़ डेयरी किसानों के साथ भारत का डेयरी सेक्टर सामूहिक प्रयास और रणनीतिक विकास की ताकत का बेहतरीन सबूत है। 50 साल पहले दूध की कमी वाले देश से दुनिया का सबसे बड़ा दूध उत्पादक बनने तक भारत ने असाधारण यात्रा तय की है। आज दूध न सिर्फ देश का सबसे बड़ा कृषि उत्पाद है बल्कि यह कृषि अर्थव्यवस्था का महत्वपूर्ण अंश भी बन गया है। भारत की डेयरी इंडस्ट्री लगभग 14 लाख करोड़ रुपए की है और यह देश की जीडीपी में पांच प्रतिशत का योगदान करती है। कृषि क्षेत्र में इसका हिस्सा लगभग एक-तिहाई है।

ग्रामीण अर्थव्यवस्था का महत्वपूर्ण स्तंभः

  तेजी से विकसित हो रहे कृषि क्षेत्र में डेयरी सेक्टर ग्रामीण अर्थव्यवस्था का एक महत्वपूर्ण स्तंभ बनकर उभरा है। मौसमी फसलों के विपरीत डेयरी फार्मिंग पूरे साल आय का एक विश्वसनीय स्रोत बन गया है। इससे किसानों को अपनी आमदनी निरंतर बरकरार रखने और कर्ज तथा बाहरी वित्तीय मदद पर निर्भरता कम करने में मदद मिली है। यह स्थिरता खासतौर से ग्रामीण इलाकों में देखी जा सकती है जहां जलवायु परिवर्तन, बाजार में उतार-चढ़ाव और फसलों को होने वाले नुकसान के कारण कृषि आय को लेकर जोखिम बहुत बढ़ गया है।

  पिछले 5 दशकों में भारत की आबादी ढाई गुना बढ़ी लेकिन दूध उत्पादन 10 गुना बढ़ा है। अनाज जैसे दूसरे खाद्य पदार्थों का उत्पादन सिर्फ 2.8 गुना हुआ है। दूध उत्पादन में इस उल्लेखनीय वृद्धि ने करोड़ों भूमिहीन और छोटे किसानों का जीवन बदला है, उन्हें आजीविका का सतत साधन उपलब्ध कराकर उन्हें गरीबी से बाहर निकाला है।

  श्रम सघन प्रकृति होने के कारण डेयरी फार्मिंग ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार के भी अनेक अवसर पैदा करता है। पशुपालन से लेकर दूध की प्रोसेसिंग और वितरण तक डेयरी सेक्टर ने करोड़ों लोगों को रोजगार दे रखा है। इस तरह ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाने तथा गरीबी दूर करने में इसका योगदान महत्वपूर्ण है।

महिलाओं का आर्थिक सशक्तीकरणः

भारत की आबादी में 48.5% महिलाएं हैं और राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था में उनका योगदान भी निरंतर बढ़ रहा है। महिलाएं कृषि क्षेत्र की रीढ़ हैं क्योंकि डेयरी फार्मिंग में 70% से अधिक काम महिलाएं ही करती हैं। इस सेक्टर में उनका जुड़ाव खाद्य और पोषण सुरक्षा के लिए ही नहीं, बल्कि ग्रामीण परिवारों की आर्थिक स्थिरता के लिए भी महत्वपूर्ण है।

  अनेक ग्रामीण समुदायों में मवेशियों की देखभाल मुख्य रूप से महिलाएं ही करती हैं। फिर भी उनके योगदान की अक्सर अनदेखी कर दी जाती है या उसे कमतर आंका जाता है। लेकिन उनकी भूमिका को औपचारिक रूप देकर तथा डेयरी संबंधी परिसंपत्तियों पर उनके मालिकाना हक तथा नियंत्रण उपलब्ध करवा कर यह सेक्टर महिलाओं का सशक्तीकरण करता है और इस बिजनेस में उन्हें प्रत्यक्ष हिस्सेदार बनाता है। इस सशक्तीकरण से उन महिलाओं की परिवार में आर्थिक स्वतंत्रता और निर्णय लेने की क्षमता बढ़ती है। इससे न सिर्फ उनकी सामाजिक आर्थिक स्थिति बेहतर होती है बल्कि उनका आत्मविश्वास भी बढ़ता है।

  डेयरी सेक्टर ग्रामीण इलाकों में लैंगिक समानता को बढ़ावा देने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। डेयरी फार्मिंग में ज्यादा संख्या में महिलाओं की भागीदारी होने के कारण उनमें आत्मविश्वास पनपता है और वे अपने अधिकारों के लिए आवाज उठाती हैं। साथ ही अपने समुदाय में लीडरशिप की भूमिका भी निभाती हैं। यह बदलाव न सिर्फ ज्यादा समावेशी और समान अधिकारों वाले समाज को बढ़ावा देता है बल्कि इससे सामुदायिक विकास के प्रयासों को भी मजबूती मिलती है। इन सबका नतीजा ग्रामीण संपन्नता के रूप में देखने को मिलता है।

भारतीय डेयरी उद्योग की चुनौतियांः

भारत का डेयरी उद्योग इस समय कई महत्वपूर्ण चुनौतियों का सामना कर रहा है। इसकी प्रमुख चिंताओं में एक किसानों, उपभोक्ताओं तथा नीति निर्माताओं के बीच सस्टेनेबिलिटी की अलग-अलग व्याख्या है। यहां मुख्य मुद्दा यह है कि किसानों तथा उपभोक्ताओं, दोनों के लिए कैसे बेहतर स्थिति सुनिश्चित की जा सके। यह ऐसी स्थिति हो जहां दूध उत्पादन में वृद्धि का सभी पक्षों को लाभ मिले।

  दूसरी महत्वपूर्ण चुनौती अंतरराष्ट्रीय बाजार में प्रतिस्पर्धी बने रहने की है। हम सिर्फ दूध उत्पादन बढ़ाने के लिए इसके दाम नहीं बढ़ा सकते। हमें पशुओं की उत्पादकता पर भी ध्यान देना होगा। साथ ही दूध उत्पादन की लागत भी कम करनी पड़ेगी। निर्यात बढ़ाने के लिए जरूरी है कि हमारे डेयरी उत्पादों की कीमत प्रतिस्पर्धी हो और वह अंतरराष्ट्रीय गुणवत्ता मानकों को पूरा करें। इसलिए महत्वपूर्ण सवाल यह है कि प्रति लीटर दूध उत्पादन की लागत कैसे कम की जाए। यह बेहतर फीड कन्वर्जन रेट और नस्लों में सुधार के जरिए ही संभव है।

  इसके अलावा खाद्य महंगाई और खाद्य संपन्नता के बीच संतुलन बनाने की भी चुनौती है। अक्सर जब किसानों को उनकी उपज की बेहतर कीमत मिलती है तो उसे खाद्य महंगाई का नाम दे दिया जाता है। लेकिन इसे संपन्नता और किसानों के लिए इंसेंटिव के तौर पर देखा जाना चाहिए ताकि वह दूध का उत्पादन जारी रख सके। हमें खाद्य सुरक्षा और किसानों की आजीविका के बीच संतुलन बनाने की जरूरत है।

  डेयरी सेक्टर कृषि क्षेत्र में जितना योगदान करता है उस अनुपात में इसके लिए बजट आवंटन नहीं होता है। भावी पीढ़ियां इस उद्योग में बनी रहें, यह सुनिश्चित करने के लिए जरूरी है कि दूध उत्पादन को लाभदायक तथा आधुनिक बिजनेस के रूप में तैयार किया जाए।

  एक और महत्वपूर्ण मुद्दा बिना दूध वाले पेय पदार्थ बनाने वालों की तरफ से फैलाई जाने वाली गलत सूचनाएं हैं। उपभोक्ताओं के बीच दूध के फायदे को लेकर जागरूकता बढ़ाकर हमें इसका मुकाबला करना चाहिए। डेयरी उत्पादन में सस्टेनेबिलिटी और पर्यावरण को लेकर चिंता भी बढ़ रही है। भारत के छोटे और सीमांत किसानों के लिए प्राथमिकता आजीविका से जुड़ा उत्सर्जन होनी चाहिए ना कि लग्जरी। डेयरी फार्मिंग पर उनकी आर्थिक निर्भरता की हकीकत तथा सस्टेनेबिलिटी की जरूरत के बीच संतुलन की आवश्यकता है।

  किसानों की आमदनी बढ़ाने का जरिया और महिलाओं के आर्थिक सशक्तीकरण के एक माध्यम के तौर पर भारत के डेयरी सेक्टर में अनेक संभावनाएं हैं। इस सेक्टर में लगातार निवेश करके और इस सेक्टर को समर्थन देकर भारत टिकाऊ आर्थिक विकास, बेहतर ग्रामीण आजीविका और समान अधिकारों वाले समाज का निर्माण कर सकता है। डेयरी इंडस्ट्री का सफलता का इतिहास रहा है। इसलिए इसमें पूरे देश के करोड़ों किसानों तथा महिलाओं का बेहतर भविष्य निहित है।

  महिलाएं कृषि क्षेत्र की रीढ़ हैं, डेयरी फार्मिंग में 70% से अधिक काम महिलाएं ही करती हैं। इस सेक्टर में उनका जुड़ाव खाद्य और पोषण सुरक्षा के लिए ही नहीं, बल्कि ग्रामीण परिवारों की आर्थिक स्थिरता के लिए भी महत्वपूर्ण है।


डॉ. आर. एस. सोढ़ी
प्रेसिडेंट, इंडियन डेयरी एसोसिएशन, पूर्व मैनेजिंग डायरेक्टर, अमूल (जीसीएमएमएफ)

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